द्रौपदी मुर्मू का जीवनी | Draupadi Murmu Biography In Hindi

Draupadi Murmu Biography In Hindi – द्रौपदी मुर्मू जी का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा राज्य के मयूरभंज जिले के उपरबेड़ा गांव में एक संथाल आदिवासी परिवार में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए शिक्षा प्राप्त की और बाद में सामाजिक सेवा और राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय रहीं। साल 2022 में वह भारत की राष्ट्रपति बनीं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा और ऐतिहासिक जीत हासिल की। Draupadi Murmu भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति हैं। इसके अलावा, वह 64 वर्ष की उम्र में यह पद संभालने वाली सबसे युवा महिला राष्ट्रपति बनीं और आज़ाद भारत में जन्मी पहली राष्ट्रपति भी हैं।

Table of Contents hide

Draupadi Murmu Biography in Hindi – जीवन परिचय

पूरा नाम (Name)द्रौपदी मुर्मू
पति का नाम (Husband Name)श्याम चरण मुर्मू 
शिक्षा (Schooling)उपरबेडा़ के स्थानीय प्राथमिक विद्यालय (गर्ल हाई स्कूल यूनिटी-2)
कॉलेज (College)रमा देवी महिला विश्वविद्यालय, भुवनेश्वर (बीए)
शिक्षा की डिग्री (Education Degree)स्नातक
निवास स्थान (Resident Place)राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली 
पेशा (Profession)राजनीतिज्ञ, अध्यापक
ऊंचाई (Hight)5 फीट 2 इंच
शौक (Hobbies)राजनीतिज्ञ, अध्यापक 
सम्मान (Award)नीलकंठ पुरुस्कार (2007)
राष्ट्रीयता (Nationality)भारतीय

द्रौपदी मुर्मू का परिवार (Draupadi Murmu Family)

Draupadi Murmu

द्रौपदी मुर्मू का जन्म एक आदिवासी संथाल समुदाय के परिवार में हुआ था। उनके पिता बिरंची नारायण टुडू एक किसान थे, और वे तथा उनके दादा, दोनों ही गांव की पंचायत के पारंपरिक मुखिया रह चुके थे। द्रौपदी मुर्मू ने वर्ष 1980 में श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया, जो एक बैंक में कार्यरत थे। दुर्भाग्यवश, 2014 में श्याम चरण मुर्मू का निधन हो गया।

द्रौपदी मुर्मू को तीन संतानें थीं—दो बेटे और एक बेटी। उनकी बेटी का नाम इतिश्री मुर्मू है। बेहद दुखद बात यह है कि उनके दोनों पुत्रों का असमय निधन हो गया, जिनमें से एक की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हुई, जबकि दूसरे बेटे की मृत्यु रहस्यमय परिस्थितियों में हुई।

“संघर्षों से लड़ते हुए सफलता की ऊंचाइयों को छूने वाली महिला का नाम है — द्रौपदी मुर्मू।”

द्रौपदी मुर्मू कैरियर (Draupadi Murmu Carrer)

द्रौपदी मुर्मू ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1979 में ओडिशा सरकार के सिंचाई विभाग में एक जूनियर असिस्टेंट के पद पर नियुक्त होकर की थी। इस पद पर उन्होंने लगभग चार वर्षों तक कार्य किया और 1983 तक अपनी सेवाएं दीं। सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने अनुशासन, ईमानदारी और जिम्मेदारी जैसे गुणों का प्रदर्शन किया, जो उनके बाद के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में भी झलकता है।

सरकारी सेवा के बाद उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने का निर्णय लिया और वर्ष 1994 से 1997 तक रायरंगपुर स्थित श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में शिक्षक के रूप में कार्य किया। इस संस्था में उन्होंने हिंदी, ओड़िया, गणित और भूगोल जैसे विषयों की पढ़ाई करवाई। खास बात यह रही कि उन्होंने इस स्कूल में शिक्षा देते हुए कभी भी अपना पूरा वेतन स्वीकार नहीं किया, जिससे उनकी समाज सेवा और सेवा भावना की झलक मिलती है। उनका मानना था कि शिक्षा का उद्देश्य केवल नौकरी नहीं, बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदारी है।

इस दौर में उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण और आदिवासी बच्चों के लिए विशेष रूप से काम किया और उन्हें शिक्षित करने के लिए निरंतर प्रयास किए। उनके इस समर्पण ने उन्हें एक संवेदनशील, जनसेवक और मजबूत व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया, जो आगे चलकर उनके राजनीतिक जीवन की नींव बना।

द्रौपदी मुर्मू की शिक्षा (Draupadi Murmu Education)

द्रौपदी मुर्मू ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ओडिशा के मयूरभंज जिले में स्थित अपने गांव के स्कूल से प्राप्त की। बचपन से ही वे पढ़ाई में तेज थीं और कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी शिक्षा जारी रखी। आदिवासी समुदाय से होने के बावजूद उन्होंने कभी भी शिक्षा से समझौता नहीं किया और निरंतर आगे बढ़ती रहीं। परिवार की सीमित आर्थिक स्थिति के बावजूद उन्होंने मेहनत, लगन और आत्मविश्वास के बल पर अपनी शैक्षणिक यात्रा जारी रखी।

अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने भुवनेश्वर के रामदेवी महिला महाविद्यालय (Ramadevi Women’s College) से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। वह अपनी पीढ़ी की उन कुछ महिलाओं में से थीं जिन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। शिक्षा ने न केवल उनके व्यक्तित्व को निखारा, बल्कि समाज सेवा और राजनीति में कदम रखने के लिए एक मजबूत नींव भी तैयार की। उनका यह शैक्षणिक सफर आज भी कई ग्रामीण और आदिवासी बेटियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बना हुआ है।

द्रौपदी मुर्मू का राजनीतिक कैरियर (Political Career of Draupadi Murmu)

द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत वर्ष 1997 में की, जब वे रायरंगपुर नगर पंचायत के लिए महिलाओं के लिए आरक्षित सीट से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में निर्वाचित हुईं। यह उनका पहला कदम था सार्वजनिक सेवा की दिशा में, जिसने बाद में उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में एक सशक्त नेता के रूप में स्थापित किया। इसी दौरान उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण की और पार्टी की विचारधारा से जुड़कर जनसेवा के कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई।

वर्ष 2000 में हुए ओडिशा विधानसभा चुनावों में उन्होंने भाजपा के टिकट पर रायरंगपुर विधानसभा क्षेत्र से जीत दर्ज की और विधायक बनीं। इसके बाद वे 2000 से 2009 तक लगातार दो बार विधायक रहीं। भाजपा और बीजू जनता दल (बीजद) की गठबंधन सरकार में उन्हें मंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 2000 से 2002 तक उन्होंने वाणिज्य एवं परिवहन विभाग में स्वतंत्र प्रभार मंत्री के रूप में कार्य किया, जबकि 2002 से 2004 तक उन्हें मत्स्य पालन एवं पशु संसाधन विकास विभाग का प्रभार सौंपा गया। अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों के विकास, पशुपालन, मत्स्य उद्योग और परिवहन सुविधाओं के विस्तार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए।

उनके प्रभावी और जनहितकारी कार्यों को देखते हुए वर्ष 2007 में उन्हें ओडिशा विधानसभा का सर्वश्रेष्ठ विधायक घोषित किया गया और उन्हें नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो राज्य के विधायकों को दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित सम्मान है।

हालांकि, वर्ष 2009 के आम चुनावों में जब उन्होंने मयूरभंज लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसका एक मुख्य कारण भाजपा और बीजद के बीच हुआ गठबंधन टूट था, जिससे चुनावी समीकरण बदल गए थे। लेकिन इस हार से उनका उत्साह कम नहीं हुआ और उन्होंने भाजपा में अपनी सक्रिय भूमिका जारी रखी। वे 2013 में भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी (एसटी मोर्चा) की सदस्य बनीं और 2015 तक उन्होंने पार्टी की मयूरभंज जिला इकाई की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।

उनकी राजनीतिक यात्रा दृढ़ संकल्प, ईमानदारी और जनसेवा की मिसाल रही है, जिसने उन्हें भारतीय राजनीति में एक प्रेरणादायी महिला नेता के रूप में प्रतिष्ठित किया।

ये भी पढ़े – Mahatma Gandhi Biography : महात्मा गांधी की जीवन गाथा सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता की कहानी

विवाह और पारिवारिक जीवन

द्रौपदी मुर्मू का विवाह वर्ष 1980 में श्याम चरण मुर्मू से हुआ, जो एक बैंक अधिकारी थे। शादी के बाद उन्होंने अपने पारिवारिक जीवन और सामाजिक जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाए रखा। उनका वैवाहिक जीवन साधारण लेकिन मजबूत समझ और सहयोग पर आधारित था। श्याम चरण मुर्मू ने हमेशा द्रौपदी मुर्मू को समाज सेवा और राजनीति में सक्रिय रहने के लिए प्रोत्साहित किया। वे एक साथ जीवन के कई उतार-चढ़ावों से गुजरे और एक दूसरे का संबल बने रहे।

झारखंड की पहली महिला राज्यपाल – द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू को 18 मई 2015 को झारखंड की नौवीं राज्यपाल के रूप में शपथ दिलाई गई, जिससे वे इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला और पहली आदिवासी महिला बन गईं। उनके शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन रांची में राजभवन के बिरसा मंडप में हुआ था, जहाँ झारखंड के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाई।

उनका लगभग छह वर्ष तक (मई 2015 – जुलाई 2021) राज्यपाल के रूप में कार्यकाल रहा, जो झारखंड के इतिहास में अब तक का सबसे लंबा कार्यकाल माना जाता है। इस दौरान उन्होंने आदिवासी समुदाय के सशक्तिकरण, पारदर्शिता, और सामाजिक-आर्थिक उन्नयन को प्राथमिकता दी। वे सरकार की नीतियों में आदिवासी महिलाओं की भागीदारी और अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करती रहीं ।

भारत की राष्ट्रपति बनने का सफर

द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनने का सफर भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐतिहासिक उपलब्धि के रूप में दर्ज है। वर्ष 2022 में उन्हें राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार घोषित किया गया। इससे पहले वे झारखंड की राज्यपाल रह चुकी थीं और अपने विनम्र, ईमानदार व सशक्त व्यक्तित्व के लिए जानी जाती थीं। 18 जुलाई 2022 को हुए राष्ट्रपति चुनाव में उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को भारी मतों से पराजित किया। उन्हें कुल 64% से अधिक वोट प्राप्त हुए, जो इस बात का प्रमाण था कि देश के विभिन्न राज्यों के विधायकों और सांसदों का उन्हें भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ।

21 जुलाई 2022 को उनकी ऐतिहासिक जीत की घोषणा हुई और 25 जुलाई 2022 को उन्होंने भारत की 15वीं राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण की। इसके साथ ही वे भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति, देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति, और स्वतंत्रता के बाद जन्मी पहली राष्ट्रपति बन गईं। संसद भवन के सेंट्रल हॉल में आयोजित भव्य समारोह में मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमना ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। उनके राष्ट्रपति बनने से देश के दूरस्थ और आदिवासी क्षेत्रों की महिलाओं और युवाओं को एक नई प्रेरणा मिली। द्रौपदी मुर्मू का यह सफर साबित करता है कि भारत में लोकतंत्र सचमुच हर नागरिक को सर्वोच्च शिखर तक पहुंचने का अवसर देता है।

द्रौपदी मुर्मू के प्रमुख कार्य

द्रौपदी मुर्मू ने अपने सार्वजनिक जीवन में हमेशा समाज के वंचित वर्गों, विशेषकर आदिवासी समुदायों के उत्थान के लिए कार्य किया। ओडिशा सरकार में मंत्री रहते हुए उन्होंने वाणिज्य, परिवहन, मत्स्य पालन और पशु संसाधन विकास जैसे विभागों में उल्लेखनीय कार्य किए। उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में सड़क और परिवहन सुविधाएं सुधारने के साथ-साथ किसानों और पशुपालकों के लिए योजनाएं शुरू कीं। झारखंड की राज्यपाल के रूप में उन्होंने संवैधानिक मूल्यों का पालन करते हुए राज्य में राजनीतिक अस्थिरता के समय भी धैर्य और संतुलन बनाए रखा। उनके कार्यों की सराहना इसलिए भी होती है क्योंकि वे हमेशा पारदर्शिता, सेवा भाव और जनहित को प्राथमिकता देती आई हैं।

राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने महिलाओं, आदिवासियों, युवाओं और सामाजिक न्याय से जुड़े विषयों को अपने भाषणों और पहल के केंद्र में रखा। उन्होंने शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, डिजिटल साक्षरता और स्वस्थ भारत जैसे क्षेत्रों पर विशेष बल दिया। उनकी सादगी, संवेदनशीलता और राष्ट्र के प्रति समर्पण ने उन्हें एक जनप्रिय राष्ट्रपति के रूप में प्रतिष्ठित किया है। वे युवाओं को भारतीय संस्कृति और संविधान के मूल्यों के प्रति जागरूक करने के लिए देश भर में अनेक संस्थानों से संवाद कर चुकी हैं।

पुरस्कार और सम्मान

द्रौपदी मुर्मू को उनके सार्वजनिक जीवन और सेवा भावना के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया है। वर्ष 2007 में उन्हें ‘नीलकंठ पुरस्कार’ (Nilkanth Award) से सम्मानित किया गया, जो ओडिशा विधानसभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक को दिया जाता है। यह सम्मान उनके विधायी कार्य, समाजसेवा और आदिवासी समुदाय के प्रति समर्पण का प्रमाण है।

इसके अतिरिक्त, उन्हें विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों और सामाजिक संगठनों द्वारा भी कई बार सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति बनने के बाद वे भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी सराही गईं। उनके जीवन और कार्यशैली को देशभर की महिलाएं, छात्र, और समाजसेवी प्रेरणा के रूप में देख रहे हैं। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि संकल्प, ईमानदारी और सेवा का मार्ग अपनाकर कोई भी व्यक्ति देश की सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँच सकता है।

द्रौपदी मुर्मू द्वारा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय यात्राएँ

द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति बनने के बाद कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय यात्राएँ की हैं जिनका उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों से संवाद स्थापित करना, शैक्षणिक संस्थानों में छात्रों को संबोधित करना, और सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लेना रहा है। उन्होंने स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, और अन्य राष्ट्रीय पर्वों पर देश के विभिन्न हिस्सों में उपस्थिति दर्ज करवाई है। इसके अलावा उन्होंने असम, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु जैसे राज्यों में जाकर राज्यपालों और मुख्यमंत्रियों से भेंट की, आदिवासी समुदायों के कार्यक्रमों में भाग लिया, और अनेक विश्वविद्यालयों के दीक्षांत समारोहों को संबोधित किया। उनका यह प्रयास रहा है कि वे देश के कोने-कोने से लोगों की भावनाएं जानें और युवाओं को प्रेरित करें।

अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं की बात करें तो राष्ट्रपति बनने के बाद द्रौपदी मुर्मू ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकारी और कूटनीतिक यात्राओं में हिस्सा लिया। उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय यात्रा सितंबर 2023 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो और सर्बिया के लिए हुई, जहाँ उन्होंने भारत-सर्बिया संबंधों को सुदृढ़ किया और प्रवासी भारतीय समुदाय से संवाद किया। उन्होंने वहाँ भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों, वैश्विक शांति, और विकासशील देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया। इसके अलावा उन्होंने विभिन्न देशों के राजदूतों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधियों से भी राष्ट्रपति भवन में औपचारिक मुलाकातें कीं, जिससे भारत के द्विपक्षीय संबंध मजबूत हुए।

इन यात्राओं के माध्यम से द्रौपदी मुर्मू ने भारत की संस्कृति, लोकतंत्र और सहिष्णुता का विश्व मंच पर प्रभावी रूप से प्रतिनिधित्व किया और यह संदेश दिया कि भारत एक समावेशी और उन्नतिशील राष्ट्र है जहाँ एक आदिवासी महिला भी सर्वोच्च संवैधानिक पद तक पहुँच सकती है।

Droupadi Murmu Biography in Hindi हमें यह सिखाती है कि अगर संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी बाधा आपको सफलता की राह से रोक नहीं सकती। द्रौपदी मुर्मू का जीवन संघर्ष, साहस और सेवा की अद्भुत मिसाल है।

वे आज भी देश के करोड़ों लोगों, खासकर महिलाओं और आदिवासियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं।

द्रौपदी मुर्मू की जीवनी क्या है?

द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून, 1958 को ओडिशा राज्य के उपरबेड़ा गाँव में एक संथाली आदिवासी परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता ने उनका नाम पुति टुडू रखा था; बाद में एक शिक्षिका ने उनका नाम द्रौपदी रखा।

उन्होंने किस राजनीतिक दल से अपने करियर की शुरुआत की थी?

उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) से राजनीति में प्रवेश किया।

द्रोपदी मुर्मू किसकी पत्नी थी?

द्रौपदी मुर्मू का विवाह श्याम चरण मुर्मू से हुआ था। वह एक बैंकर थे और 2014 में उनका निधन हो गया।

भारत के आदिवासी राष्ट्रपति कौन हैं?

भारत के पहले और अब तक के एकमात्र आदिवासी राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू हैं। उन्होंने 25 जुलाई 2022 को भारत के 15वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

Leave a Comment

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now