Mahatma Gandhi Biography : महात्मा गांधी की जीवन गाथा सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता की कहानी को जानेंगे । भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता और प्रेरणास्रोत थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलनों के माध्यम से देश को आज़ादी दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई। उन्हें भारत में ‘राष्ट्रपिता’ का दर्जा प्राप्त है, और उनका जीवन संघर्ष आज भी हर पीढ़ी को सत्य, त्याग और सहनशीलता का पाठ पढ़ाता है। महात्मा गांधी का सपना केवल भारत को स्वतंत्र कराना नहीं था, बल्कि यहाँ के गरीब और दबे-कुचले वर्ग को सामाजिक न्याय दिलाना भी था। उनके जन्मदिन को हर वर्ष 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। उनके सिद्धांतों – सत्य और अहिंसा – ने न केवल भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित किया।
महात्मा गांधी की जीवनी (Mahatma Gandhi Biography In Hindi)
नाम | मोहनदास करमचंद गांधी |
जन्म दिनांक | 2 अक्टूबर, 1869 |
जन्म स्थान | गुजरात के पोरबंदर में |
पिता का नाम | करमचंद गांधी |
माता का नाम | पुतलीबाई |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
धर्म | हिन्दू |
जाती | गुजराती |
शिक्षा | बैरिस्टर |
पत्नि का नाम | कस्तूरबाई माखंजी कपाड़िया [कस्तूरबा गांधी] |
संतान बेटा बेटी का नाम | 4 पुत्र -: हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास |
मृत्यु | 30 जनवरी 1948 |
हत्यारे का नाम | नाथूराम गोडसे |
Mahatma Gandhi Biography : महात्मा गांधी की जीवन गाथा सत्य, अहिंसा और स्वतंत्रता की कहानी
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी उस समय पोरबंदर राज्य के दीवान (प्रधान मंत्री) थे, और माता पुतलीबाई धार्मिक स्वभाव की आदर्श गृहिणी थीं। मोहनदास आठ भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन :-

महात्मा गांधीजी बचपन में बेहद शर्मीले और अंतर्मुखी थे। वे ज़्यादा बोलते नहीं थे और चुपचाप रहना पसंद करते थे। स्कूल में वे औसत छात्र माने जाते थे—न बहुत होशियार, न बहुत कमजोर। उन्हें नाटक और खेलकूद में दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन सच्चाई और आत्मनिरीक्षण उनके व्यक्तित्व में बहुत गहराई से रचे-बसे थे।
उनकी आत्मकथा “सत्य के प्रयोग” में वह लिखते हैं कि कैसे उन्होंने एक बार चोरी की और बाद में guilt से भरकर अपने पिता को पत्र लिखकर क्षमा माँगी। यह घटना उनके चरित्र निर्माण में निर्णायक साबित हुई।
महात्मा गांधीजी की उम्र महज 13 साल थी, उनका विवाह कस्तूरबाई कपाड़िया से हुआ। यह एक बाल विवाह था, जो उस समय की सामाजिक परंपरा के अनुसार सामान्य था। विवाह ने उन्हें जीवन की जिम्मेदारियों से जल्दी रूबरू करावाया।
हालांकि, उस उम्र में वे वैवाहिक जीवन के अर्थ को नहीं समझते थे। लेकिन आगे चलकर कस्तूरबा गांधी उनके संघर्ष और आंदोलनों में एक सशक्त साथी बनकर साथ दिया।
महात्मा गांधी का शिक्षा :-
गांधीजी ने प्राथमिक शिक्षा पोरबंदर और फिर राजकोट में प्राप्त की। वे अंग्रेज़ी, गणित, और गुजराती में औसत थे, लेकिन पढ़ाई के प्रति ईमानदारी रखते थे। उन्हें गलतियाँ स्वीकार करना आता था, और वे हमेशा सुधार के लिए तैयार रहते थे।
महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका यात्रा :-
1893 में, मोहनदास करमचंद गांधी एक मामूली वकील के रूप में भारत से दक्षिण अफ्रीका गए। उन्हें एक भारतीय व्यापारी दादा अब्दुल्ला के कानूनी मामले में सहायता करने के लिए एक साल के कॉन्ट्रैक्ट पर भेजा गया था। उस समय उनकी उम्र सिर्फ 24 साल थी।
लेकिन यह यात्रा सिर्फ एक कानूनी केस तक सीमित नहीं रही — यह यात्रा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट बन गई।
- पहला झटका: नस्लभेद का अनुभव :-
गांधीजी को पहली बार नस्लीय भेदभाव का तीखा अनुभव पीटरमारिट्ज़बर्ग स्टेशन पर हुआ। उन्होंने प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद सिर्फ “रंगभेद” के कारण ट्रेन से नीचे उतार दिया गया और सर्द रात में प्लेटफ़ॉर्म पर बिठा दिया गया।
यह घटना उनके आत्मसम्मान और अंतरात्मा को झकझोर गई। वहीं से उन्होंने ठान लिया कि वे अन्याय और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाएंगे — बिना हथियार, लेकिन सिद्धांतों के साथ।
- दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों की स्थिति :-
उस समय दक्षिण अफ्रीका में हज़ारों भारतीय मजदूर काम कर रहे थे — ज़्यादातर गिरमिटिया, जो चीनी के खेतों में काम करते थे। उनके साथ भेदभाव, गाली-गलौज, मारपीट और कानून के नाम पर अत्याचार आम था।
गांधीजी ने महसूस किया कि ये लोग न सिर्फ शोषण का शिकार थे, बल्कि नेतृत्व विहीन भी थे। उन्होंने इस परिस्थिति को बदलने की ठानी।
- महात्मा गांधी का सत्याग्रह की शुरुआत :-
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में ही सत्याग्रह (Satyagraha) का पहला प्रयोग किया। यह विरोध का एक ऐसा तरीका था जो हिंसा की बजाय सत्य, आत्मबल, और अहिंसा पर आधारित था।
1906 में ट्रांसवाल सरकार ने एक नया कानून लाया, जिसके तहत सभी भारतीयों को पंजीकरण करवाना अनिवार्य था — फिंगरप्रिंट, पहचान पत्र आदि के ज़रिए। गांधीजी ने इसके विरोध में बड़े पैमाने पर अहिंसात्मक आंदोलन शुरू किया।
लाखों भारतीयों ने कानून को न मानने का संकल्प लिया। कई को जेल हुई, कई को पीटा गया, पर किसी ने हिंसा नहीं की। यह था पहला सफल संगठित और अहिंसक जन आंदोलन।
- सेवा और संगठन :-
दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए गांधीजी ने केवल आंदोलन नहीं चलाया, बल्कि सामाजिक सेवा भी की है।
उन्होंने इंडियन ओपिनियन नामक अख़बार शुरू किया, जिससे भारतीयों की आवाज़ बुलंद हुई। टॉल्सटॉय फार्म की स्थापना की, जहाँ सत्याग्रहियों को प्रशिक्षण दिया जाता था। युद्ध के दौरान उन्होंने घायल सैनिकों की सेवा के लिए भारतीय एम्बुलेंस कोर का नेतृत्व किया।
महात्मा गांधी का भारत आगमन और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेना :-
गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में कुल मिलाकर 21 साल बिताए (1893–1914)। इस दौरान वे एक वकील से जननेता, और फिर महात्मा के रूप में विकसित हुए।
1914 में जब वे भारत लौटे, तो वे सिर्फ एक वकील नहीं थे — वे एक सिद्धांतवादी नेता थे, जिनके पास एक विचारधारा थी, एक तरीका था, और लोगों को साथ जोड़ने की ताक़त थी।
महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलन: एक संक्षिप्त और स्पष्ट सूची :-
महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक केंद्रीय चेहरा थे। उन्होंने अहिंसा और सत्य के मार्ग पर चलते हुए भारत को आज़ादी दिलाने के लिए कई महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया। नीचे उनके प्रमुख आंदोलनों की सूची और उनका सारांश दिया गया है :-
1917–18: चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह :-
1918 में महात्मा गांधी ने भारत में दो प्रमुख आंदोलनों की शुरुआत की – चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह।
चंपारण (बिहार) में ब्रिटिश ज़मींदार किसानों को जबरन नील की खेती करने और उसे तय की गई कम दर पर बेचने के लिए मजबूर कर रहे थे। किसानों ने जब इसका विरोध किया, तो उन्होंने गांधीजी से मदद ली। गांधीजी ने इस अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण और अहिंसात्मक आंदोलन चलाया, जिससे ब्रिटिश सरकार को किसानों की मांगें माननी पड़ीं। यह भारत में गांधीजी की पहली बड़ी राजनीतिक जीत थी, जिसने उन्हें जननेता के रूप में स्थापित किया।
उसी वर्ष गुजरात के खेड़ा ज़िले में बाढ़ और फसल खराब होने के बावजूद सरकार किसानों से टैक्स वसूलना चाहती थी। किसान टैक्स देने में असमर्थ थे और उन्होंने गांधीजी से सहयोग मांगा। गांधीजी ने असहयोग की नीति अपनाई और जनता से कर न भरने की अपील की। इस आंदोलन को जबरदस्त जनसमर्थन मिला और अंततः ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा। मई 1918 में सरकार ने टैक्स में राहत की घोषणा की। इन दोनों आंदोलनों ने न सिर्फ गांधीजी की नेतृत्व क्षमता को साबित किया, बल्कि आगे चलकर स्वतंत्रता संग्राम की मजबूत नींव भी रखी।
1919 खिलाफत आंदोलन :-
महात्मा गांधी को यह महसूस होने लगा था कि कांग्रेस जनता से धीरे-धीरे कट रही है। उन्होंने इस राजनीतिक कमजोरी को दूर करने और देश में हिंदू-मुस्लिम एकता को मज़बूत करने के लिए नया रास्ता चुना। इसी सोच के तहत गांधीजी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया, जो दुनिया भर के मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा (धार्मिक प्रमुख) को हटाए जाने के विरोध में चलाया जा रहा था। गांधीजी ने पूरे भारत के मुस्लिम नेताओं के साथ मिलकर ऑल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस का आयोजन किया और खुद इसकी अगुवाई की। यह कदम मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ, जिससे गांधीजी को एक राष्ट्रीय नेता के रूप में पहचान मिली और कांग्रेस में उनकी स्थिति और मजबूत हो गई।
खिलाफत आंदोलन ने शुरुआत में हिंदू-मुस्लिम एकता को एक नई ऊर्जा दी, लेकिन यह एकता ज्यादा लंबे समय तक नहीं टिक सकी। 1922 में आंदोलन पूरी तरह समाप्त हो गया और इसके बाद सांप्रदायिक मतभेद फिर से उभरने लगे। गांधीजी ने जीवन भर हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया, लेकिन समय के साथ दोनों समुदायों के बीच की दूरी बढ़ती चली गई। फिर भी, खिलाफत आंदोलन गांधीजी की दूरदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष सोच का प्रमाण था, जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को एकजुटता का नया आयाम दिया।
1920 असहयोग आंदोलन :-
1919 में अंग्रेजी सरकार ने रोलेट एक्ट पास किया, जिसके जरिए बिना मुकदमा या अपील के किसी भी भारतीय को जेल में डाला जा सकता था। इस काले कानून का देशभर में विरोध हुआ, और गांधीजी ने इसके खिलाफ कई शांतिपूर्ण सभाएं आयोजित कीं। इन्हीं में से एक सभा पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग में हुई, जहाँ हजारों लोग एकत्र हुए थे। लेकिन अंग्रेजी फौज ने निहत्थे लोगों पर गोलियां चला दीं, जिसमें सैकड़ों निर्दोष मारे गए। इस बर्बरता ने पूरे देश को झकझोर दिया और गांधीजी को यह एहसास हुआ कि अब अंग्रेजी शासन का सहयोग करना नैतिक रूप से गलत है।
1920 में गांधीजी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ ‘असहयोग आंदोलन‘ शुरू किया। इस आंदोलन का मकसद था कि भारतीय लोग सरकार की किसी भी सेवा, वस्तु या संस्था का सहयोग न करें – जैसे सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देना, ब्रिटिश स्कूलों और अदालतों का बहिष्कार करना, विदेशी कपड़ों को न पहनना और स्वदेशी अपनाना। गांधीजी ने विशेष रूप से इस बात पर ज़ोर दिया कि यह पूरा आंदोलन अहिंसक होना चाहिए। आंदोलन ने पूरे देश में जागरूकता फैलाई और भारतीयों में आज़ादी के प्रति एकजुटता का भाव पैदा किया।
असहयोग आंदोलन सितंबर 1920 से शुरू होकर फरवरी 1922 तक चला और यह गांधीजी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख आंदोलनों में पहला था। गांधीजी का मानना था कि ब्रिटिश सरकार भारत में केवल इसलिए शासन कर पा रही है क्योंकि भारतीय लोग ही उन्हें सहयोग दे रहे हैं, और अगर यह सहयोग बंद हो जाए तो अंग्रेजों के लिए शासन करना मुश्किल हो जाएगा। इसी सोच के तहत उन्होंने देशवासियों से अपील की कि वे किसी भी तरह से अंग्रेजी सरकार का सहयोग न करें—चाहे वह नौकरी हो, शिक्षा हो या व्यापार—but सब कुछ अहिंसात्मक तरीके से हो। गांधीजी की इस बात को लोगों ने स्वीकार किया और पूरे देश में भारी समर्थन मिला। लोगों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ दीं, बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों से निकाल लिया, विदेशी वस्त्रों का त्याग किया और हर वह कदम उठाया जिससे ब्रिटिश शासन को कमजोर किया जा सके। हालांकि इससे कई लोग बेरोजगार हुए और शिक्षा से वंचित भी, लेकिन फिर भी देश की आज़ादी के लिए लोग सब कुछ सहने को तैयार थे। आंदोलन की ताकत इतनी थी कि ऐसा लगने लगा था कि शायद आज़ादी अब ज्यादा दूर नहीं, लेकिन फरवरी 1922 में उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा में हिंसक घटना हो गई, जिसमें एक थाने को जला दिया गया और पुलिसकर्मियों की जान चली गई। इस घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन को तुरंत समाप्त करने का निर्णय लिया, क्योंकि उनके लिए अहिंसा सबसे बड़ा सिद्धांत था।
चौरी-चौरा कांड (1922) :-
असहयोग आंदोलन के दौरान देशभर में लोग शांतिपूर्वक विरोध कर रहे थे, लेकिन उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर हालात बिगड़ गए। वहाँ एक रैली के दौरान जब लोग शांति से प्रदर्शन कर रहे थे, तब पुलिस ने उन पर गोलियां चला दीं, जिससे कुछ प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई। इसके बाद गुस्साई भीड़ ने पास के पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया और वहाँ मौजूद 22 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी। इस हिंसा से गांधीजी बेहद व्यथित हुए और उन्होंने कहा, “हमें आज़ादी की लड़ाई में हिंसा का सहारा नहीं लेना चाहिए, शायद हम अब भी आज़ादी के योग्य नहीं हैं।” इसी सोच के चलते गांधीजी ने तुरंत असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया।
1930 में महात्मा गांधी का सविनय अवज्ञा आंदोलन: नमक सत्याग्रह और दांडी यात्रा की ऐतिहासिक शुरुआत :-
सन 1930 में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार के अन्यायपूर्ण कानूनों के विरोध में एक बड़े आंदोलन की शुरुआत की, जिसे ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ कहा गया। इसका मुख्य उद्देश्य था—ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाए गए अन्यायपूर्ण नियमों की अवहेलना करना, लेकिन पूरी तरह अहिंसात्मक तरीके से। गांधीजी ने इस आंदोलन की शुरुआत उस नमक कानून को तोड़कर की, जिसमें आम भारतीयों को नमक बनाने या इकट्ठा करने से रोका गया था। 12 मार्च 1930 को उन्होंने गुजरात के साबरमती आश्रम से अपनी ऐतिहासिक दांडी यात्रा शुरू की और 5 अप्रैल को दांडी पहुँचकर वहाँ खुद नमक बनाकर इस कानून का उल्लंघन किया। यह कार्य प्रतीकात्मक था, लेकिन इसका असर पूरे देश पर हुआ और आंदोलन राष्ट्रव्यापी बन गया।
यह यात्रा लगभग 24 दिन चली, जिसमें गांधीजी ने 240 मील (करीब 390 किलोमीटर) की दूरी तय की। शुरुआत में उनके साथ 78 स्वयंसेवक थे, लेकिन जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ी, हजारों लोग जुड़ते गए। गांधीजी ने बिना हिंसा के इस नमक कानून को तोड़ा और साथ ही रास्ते में कई सभाओं को संबोधित किया। इसके बाद वे समुद्र तटों की ओर बढ़े और धरसाना जैसे स्थानों पर भी नमक कानून का उल्लंघन किया। 4-5 मई की रात को गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन तब तक आंदोलन पूरे देश में फैल चुका था। उनकी गिरफ्तारी ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को अंतरराष्ट्रीय मीडिया और नेताओं की नज़रों में ला खड़ा किया।
नमक सत्याग्रह वर्षभर चला और इसके चलते लगभग 80,000 लोग गिरफ्तार किए गए। आंदोलन की समाप्ति गांधीजी की रिहाई के साथ हुई, जब वायसराय लॉर्ड इरविन द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के लिए बातचीत को तैयार हुए। यह सत्याग्रह गांधीजी की ‘सत्याग्रह’ की अवधारणा पर आधारित था, जिसका अर्थ है – सत्य का आग्रह। कांग्रेस ने इस विचार को अपने प्रमुख हथियार के रूप में अपनाया और गांधीजी को आंदोलन का नेतृत्व सौंपा। धरसाना सत्याग्रह के दौरान ब्रिटिश सैनिकों द्वारा की गई बर्बरता ने भी इस आंदोलन को और व्यापक बना दिया।
इस आंदोलन का असर केवल भारत तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह विश्व स्तर पर प्रेरणा का स्रोत बना। अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता जैसे मार्टिन लूथर किंग जूनियर और जेम्स बेवल ने भी गांधीजी की अहिंसात्मक नीति से प्रेरणा ली। आंदोलन की सफलता को देखते हुए दक्षिण भारत में इसकी कमान सी. राजगोपालाचारी और उत्तर भारत में खान अब्दुल गफ्फार खान को सौंपी गई। इस तरह नमक सत्याग्रह और सविनय अवज्ञा आंदोलन ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम को निर्णायक मोड़ दिया और ब्रिटिश शासन की नींव हिलाकर रख दी।
1942: भारत छोड़ो आंदोलन :- [Quit India Movement]
1940 के दशक तक भारत में आज़ादी की चाह इतनी गहरी हो चुकी थी कि बच्चे, बूढ़े, जवान—हर वर्ग में गुस्सा और जुनून साफ दिखाई देने लगा था। इसी उबाल को सही दिशा देने के लिए महात्मा गांधी ने अगस्त 1942 में एक नए और निर्णायक आंदोलन की शुरुआत की, जिसे ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ (Quit India Movement) कहा गया। “करो या मरो” का नारा इस आंदोलन की आत्मा था, जिसने पूरे देश को एकजुट कर दिया। यह आंदोलन अब तक के सभी आंदोलनों में सबसे प्रभावी माना गया और अंग्रेजों के लिए सीधी चुनौती बनकर उभरा।
हालांकि, आंदोलन की शुरुआत जितनी जोश से हुई थी, उसका संचालन उतना संगठित नहीं हो सका। यह गांधीजी द्वारा चलाया गया तीसरा बड़ा आंदोलन था, लेकिन इसमें कुछ रणनीतिक गलतियों के कारण यह अपेक्षित सफलता नहीं पा सका। आंदोलन पूरे देश में एक साथ शुरू नहीं हुआ—कहीं पहले, कहीं बाद में। इससे इसकी ताकत बंट गई और अंग्रेजी हुकूमत को इसे दबाने का मौका मिल गया। साथ ही, लोगों में यह उम्मीद भी घर कर गई थी कि अब आज़ादी बहुत करीब है, जिससे आंदोलन में वह आक्रामकता नहीं आ पाई जो जरूरी थी।
फिर भी, भारत छोड़ो आंदोलन का ऐतिहासिक असर बहुत गहरा था। भले ही यह आंदोलन पूरी तरह सफल नहीं रहा, लेकिन इसने अंग्रेजी हुकूमत को यह साफ संकेत दे दिया कि अब भारत को गुलाम बनाए रखना संभव नहीं है। यह आंदोलन स्वतंत्रता संग्राम के आखिरी और निर्णायक चरण का प्रतीक बन गया। गांधीजी के जीवनकाल में चलाए गए सभी आंदोलनों की यही खास बात रही—उन्होंने भारत की जनता को आवाज़ दी, एकजुट किया, और आज़ादी की राह को मजबूती दी।
महात्मा गांधी के आंदोलनों की प्रमुख विशेषताएं – जानिए इन आंदोलनों की खास बातें :-
महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ प्रमुख विशेषताएं समान रूप से देखने को मिलती हैं। सबसे पहली बात यह थी कि ये सभी आंदोलन पूरी तरह शांतिपूर्ण और अहिंसक होते थे। गांधीजी का मानना था कि असली ताकत सत्य और संयम में होती है, न कि हिंसा में। यदि किसी आंदोलन में हिंसा भड़क जाती थी, तो वे उसे तुरंत बंद कर देते थे, चाहे वह आंदोलन कितना ही प्रभावशाली क्यों न हो—जैसे चौरी-चौरा कांड के बाद असहयोग आंदोलन को रोक देना। इसी सिद्धांत के कारण भारत की आज़ादी भले कुछ देर से मिली हो, लेकिन वह नैतिक जीत के साथ मिली। गांधीजी के हर आंदोलन की नींव ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ पर रखी जाती थी, जिसने उन्हें न सिर्फ भारत में, बल्कि दुनियाभर में एक आदर्श नेता बना दिया।
महात्मा गांधी का सामाजिक जीवन – एक महान सुधारक और विचारक की झलक (Social Life of Mahatma Gandhi – Vision of a Great Reformer and Thinker)
महात्मा गांधी न केवल एक महान नेता थे, बल्कि अपने सामाजिक जीवन में भी वे सादगी और सिद्धांतों के प्रतीक थे। वे ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ में विश्वास रखते थे और इसी कारण लोग उन्हें सम्मानपूर्वक ‘महात्मा’ कहने लगे। गांधीजी को प्रजातंत्र (Democracy) की शक्ति पर गहरा विश्वास था और उन्होंने हमेशा समाज में समानता और न्याय की बात की। उनके दो सबसे बड़े हथियार थे – सत्य और अहिंसा, और इन्हीं के बल पर उन्होंने भारत को आज़ादी की राह पर लाकर खड़ा किया। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि जो भी उनसे मिलता, वह उनके विचारों और जीवनशैली से गहराई से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता।
छुआछूत को दूर करना :-
महात्मा गांधी ने भारतीय समाज से छुआछूत जैसी सामाजिक बुराई को मिटाने के लिए जीवन भर संघर्ष किया। उनका मानना था कि किसी भी इंसान को उसकी जाति या जन्म के आधार पर नीचा नहीं समझा जाना चाहिए। उन्होंने पिछड़ी और दलित जातियों को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘हरिजन’ यानी ‘ईश्वर के लोग’ कहकर पुकारा। गांधीजी ने न सिर्फ उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई, बल्कि उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए स्कूल, मंदिर और सार्वजनिक स्थानों में समान अधिकार दिलाने की कोशिश की। उनका यह सामाजिक प्रयास भारत को एक समानता पर आधारित समाज की ओर ले जाने का मजबूत कदम था।
महात्मा गांधी की मृत्यु: आयु, तारीख और हत्यारे का नाम (Mahatma Gandhi Death Details – Age, Date & Name of the Assassin)
30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर कर दी थी। दिल्ली में एक प्रार्थना सभा के दौरान उन्हें तीन गोलियां मारी गईं, और उनके मुंह से निकले अंतिम शब्द थे – “हे राम“। गांधीजी की इस दुखद मृत्यु ने पूरे देश को शोक में डुबो दिया। उनकी याद में दिल्ली स्थित राज घाट पर उनका समाधि स्थल बनाया गया, जहाँ आज भी लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। जब वे इस दुनिया से गए, तब उनकी उम्र 79 वर्ष थी, लेकिन उनके विचार और सिद्धांत आज भी हर भारतीय के दिल में जीवित हैं।
महात्मा गांधी पुस्तके (Mahatma Gandhi Books) :-
महात्मा गांधी न केवल एक महान नेता थे, बल्कि एक गहरे चिंतक और लेखक भी थे। उन्होंने अपने विचारों, अनुभवों और दृष्टिकोण को पुस्तकों के माध्यम से भी लोगों तक पहुँचाया। नीचे उनकी कुछ प्रमुख पुस्तकों की सूची दी गई है:
हिन्द स्वराज (1909) – गांधीजी की सबसे प्रसिद्ध राजनीतिक रचना, जिसमें उन्होंने आधुनिक सभ्यता की आलोचना की।
दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह (1924) – सत्याग्रह के शुरुआती प्रयोगों पर आधारित उनका अनुभव।
मेरे सपनों का भारत – गांधीजी का भारत के भविष्य को लेकर विचार।
ग्राम स्वराज – गाँवों के आत्मनिर्भर विकास पर आधारित पुस्तक।
सत्य के साथ मेरे प्रयोग (एक आत्मकथा) – गांधीजी की आत्मकथा, जिसमें उन्होंने अपने व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के अनुभव साझा किए।
रचनात्मक कार्यक्रम: इसका अर्थ और स्थान – भारत के पुनर्निर्माण और समाज सुधार को लेकर उनकी दृष्टि।
इनके अलावा भी गांधीजी ने कई लेख, पत्र और निबंध लिखे जो आज भी मार्गदर्शक के रूप में पढ़े जाते हैं।
गांधीजी की कुछ अन्य रोचक बातें
(Some Interesting Facts about Mahatma Gandhi)
‘राष्ट्रपिता’ का ख़िताब महात्मा गांधी को भारत सरकार द्वारा नहीं, बल्कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने एक रेडियो संदेश में उन्हें यह सम्मानजनक संबोधन दिया था।
उन्होंने स्वदेशी आंदोलन चलाकर विदेशी वस्त्रों और उत्पादों के बहिष्कार की अपील की और स्वयं चरखा चलाकर कपड़ा तैयार किया, जो आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया।
गांधीजी ने भारत और विदेशों में कई आश्रमों की स्थापना की, जिनमें प्रमुख हैं – टॉलस्टॉय फार्म (दक्षिण अफ्रीका) और साबरमती आश्रम (भारत)।
वे आत्मिक शुद्धि और आत्मसंयम के लिए कठिन उपवास रखते थे, जो उनके नैतिक बल की पहचान थी।
उन्होंने जीवन भर हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास किया और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने का संदेश दिया।
हर साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती पूरे भारत में मनाई जाती है, जो उनके योगदान को याद करने और उनके विचारों को अपनाने का दिन होता है।
महात्मा गांधी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि एक वैचारिक क्रांति थे। उनका जीवन, विचार और संघर्ष आज भी प्रेरणा का स्रोत हैं। अगर आप Mahatma Gandhi Biography In Hindi को गहराई से समझना चाहते हैं, तो उनके सिद्धांतों और कार्यों को पढ़ना बेहद जरूरी है।
Mahatma Gandhi Biography – FAQ
गांधी जी के कितने बच्चे थे?
महात्मा गांधी के चार बेटे थे। उनके बेटों के नाम हैं: हरिलाल, मणिलाल, रामदास और देवदास।
नोट पर गांधी जी की फोटो क्यों होती है?
भारतीय नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर 1969 में उनकी 100वीं जयंती के उपलक्ष्य में पहली बार छापी गई थी। यह तस्वीर, जो गांधीजी के मुस्कुराते हुए एक चित्र से ली गई है, को भारतीय मुद्रा का पर्याय माना जाता है, जो देश के शांति, एकता और बलिदान के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है. गांधीजी को उनकी राष्ट्रीय अपील और देश भर में उनके द्वारा प्राप्त सम्मान के कारण चुना गया था.
महात्मा गांधी के गुरु कौन थे?
महात्मा गांधी के दो मुख्य गुरु थे: गोपाल कृष्ण गोखले और श्रीमद राजचंद्र।
महात्मा गांधी की पूरी कहानी क्या है?
गांधीजी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। 13 वर्ष की आयु में महात्मा गांधी का विवाह कस्तूरबा से हुआ था, जो एक अरेंज मैरिज थी।